भुजंगासन को इंग्लिश में Cobra Pose भी कहते हैं ।आज हम जानेंगे Bhujangasana Kaise Kiya Jata Hai और 10 Bhujangasana Ke Fayde। ये आसन सूर्य नमस्कार का भी एक आसन है।नित्य भुजंगासन करने के अनेकों फायदे होते हैं।
भुजंगासन कैसे किया जाता है – Bhujangasana Kaise Kiya Jata Hai
1. सीधा लेट जाएं
सबसे पहले पेट के बल आसन पर सीधे लेट जाएं ।अब दोनों हथेलियों को फर्श पर इस प्रकार जमाएँ कि वह कंधों के किनारे, के ठीक नीचे रहे । दोनों हाथों की उंगलियां ठीक प्रकार से मिली रहनी चाहिए तथा उनके आगे वाले भाग कंधों की रेखाओं के किनारे रहने चाहिए ।
2. हाथों और ठोड़ी की स्थति
दोनों कुहनियाँ मुड़ी हुई तथा शरीर के मध्य भाग को स्पर्श करती रहनी चाहिए । अब अपने दाएं हाथ तथा बाएं गाल को भूमि पर रखते हुए पैरों की एड़ियों को आपस में सटाए तथा उनके अंगूठों को फर्श पर सपाट रखते हुए सिर को सीधा कर , ठोड़ी को भूमि पर रखें ।
3. सिर और छाती को उठाए
उसके बाद सिर को पीछे की ओर उठाना आरंभ करें तथा स्वास लेते हुए छाती को ऊपर की ओर उठाएं । नाभि को भूमि पर अथवा एकदम उसके समीप ही रखना चाहिए । कमर से लेकर नीचे पैरों तक की उंगलियों का भाग अर्थात अपनी स्वास् को रोके रहे और शरीर को कड़ा बनाए रखें तथा कुहनियां मुड़ी हुई धड़ के समीप रहे । इस दशा में 6 सेकंड से 8 सेकंड तक रहे ।
4. लेटने की अवस्था में आए
फिर धीरे-धीरे श्वास को छोड़ते हुए सिर को पृथ्वी की ओर झुकाना आरंभ करें । जितनी देर तक सिर भूमि का स्पर्श करें उतनी ही देर में स्वास छोड़ने की प्रक्रिया भी पूरी हो जानी चाहिए । सिर को भूमि से स्पर्श हो जाने के बाद उसे दाई और घुमाकर एक गाल को भूमि पर रख दे । सांसे छोड़ते समय तथा पूर्व अवस्था में लौटते समय शरीर को ढीला कर देना चाहिए ।
5. आसन की समाप्ति
इसके बाद 6 से 8 सेकेंड तक विश्राम करना चाहिए । इसी प्रकार प्रत्येक चक्र को पूरा कर विश्राम लेते हुए उसी अभ्यास को 5 बार दोहराएं ।
आरंभ मे इस आसन का अभ्यास केवल 3 बार ही करना चाहिए । बाद में 5 बार तक दोहराना चाहिए ।
10 भुजंगासन के फायदे – 10 Bhujangasana Ke Fayde
यह आसन स्त्री एवं पुरुष दोनों के लिए ही फायदेमंद है । इससे गुणात्मक तथा शारीरिक दोनों ही प्रकार के लाभ मिलते हैं । यह आसन अभ्यास करने वाले को निडर साहसी एवं वीर बनाता है।
1. गर्दन , छाती , मुख तथा सिर से संबंधित समस्या में
यह आसन – गर्दन , छाती , मुख तथा सिर को अत्यधिक क्रियाशील बनाता है । और इनसे संबंधित समस्याओं का निवारण करने में भी सहायता करता है ।
2. शरीर के ऊपरी भाग की समस्याओं में
इस अभ्यास से शरीर के ऊपरी भाग की क्रियाशीलता में विशेष वृद्धि होती है । और अनेकों बीमारी भी दूर होती है ।
3. रीड की हड्डी से संबंधित समस्याओं में
यह मेरुदण्ड में विशेष लचीलापन लाकर उसके दोषों को दूर करता है ।
4. शक्ति और स्फूर्ति में वृद्धि
इसके अभ्यास से शरीर में शक्ति और स्फूर्ति की वृद्धि होती है ।
5. पेट से संबंधित बीमारियों में
वायुविकार , स्वप्नदोष ,अपच आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं । पेट के अनेक रोगों को दूर कर भूख को बढ़ाता है ।