मधुमेह को अनेक नामो से जाना जाता है जैसे – डायबिटीज, शुगर, मधुमेह (Diabetes, Sugar, Madhumeh)
मधुमेह/शुगर/डायबिटीज का रोग ऐसे लोगो को ज्यादा होता है जो शरीर को बहुत आराम देते हैं और उससे मेहनत बहुत कम लेते हैं, यह रोग उन्हीं को ज्यादा दबोचता है। रोग होने के बाद मेहनत की तो किया फायदा फिर तो इलाज में मेहनत करनी चाहिए। मधुमेह के 90% लोग मोटे-ताजे होते हैं अथवा मोटे रह चुके होते हैं। यह रोग श्रमजीवियों और स्त्रियों को बहुत कम होता है। ये रोग प्रायः 40 वर्ष से ऊपर की आयु वर्ग के बुद्धिजीवियों में बहुतायत से पाया जाता है। कब्ज इस रोग का प्रधान कारण है।
कोई भी रोग पहले ही प्रारम्भ हो चुका होता है जब हमें पता भी नहीं चलता है। हमे पता ही तब चलता है जब रोग बढ़ जाता है और आज के इस दौर में लोग शारीरिक मेहनत का काम कम करते है क्योंकि ज्यादातर काम मशीनों से ही हो जाते है।
रोग बढ़ने के साथ उनका वजन घटना प्रारंभ हो जाता है। इस रोग में शरीर की धमनियाँ कठोर पड़ जाती हैं। मधुमेह को प्रमेह, बहुमूत्र तथा पेशाब में शुगर आना आदि नामों से भी जाना जाता है।
मधुमेह के प्रकार (Types Of Diabetes)
मधुमेह रोग दो प्रकार का होता है –
1. एक में पेशाब में शुगर आती है,
2. दूसरे प्रकार के मधुमेह में शुगर बिल्कुल नहीं आती, केवल पेशाब ही अधिक होता है ।
(Diabetes) शुगर/मधुमेह में परहेज और क्या खाये, घरेलु उपाय :
1. चीनी वाला मधुमेह और उसकी चिकित्सा –
इस प्रकार के मधुमेह को अंग्रेजी में ‘Diabetes Mellitus ‘ कहते हैं । यह रोग पाचन की खराबी से होता है और बड़ा हठीला रोग है, जो बड़ी मुश्किल से जाता है तथा इस रोग के साथ अन्य कितने ही रोग साथ – साथ चलते हैं जिनमें – मन्दाग्नि, अत्यधिक भूख, अत्यधिक प्यास, कब्ज, सिरदर्द, सिर में चक्कर, नेत्र विकार, त्वचा की शुष्कता, शक्तिहीनता, मसूड़ों का फूलना, दाँत के रोग, मुंह से दुर्गंध निकलना आदि मुख्य हैं । इस रोग के बढ़ जाने और पुराना पड़ जाने पर अधिक भयानक शारीरिक विकार जैसे – समस्त शरीर में खुजली, जल्दी न अच्छे होने वाले फोड़े, शरीर के रोमकूपों का बंद हो जाना, फेफड़ों के विकार, स्नायु विकार, अंधापन, मूत्रद्वार में जलन, मूर्च्छा आदि विकार हो जाते हैं । इस रोग से ग्रस्त रोगी का मूत्र साफ, हल्का पीलापन लिए हुए गादयुक्त होता है । रोगी को 24 घंटे में ढाई से 6 लीटर तक पेशाब होता है । चिंता, क्रोध एवं भय आदि मानसिक विकारों के कारण रोग के उपर्युक्त लक्षणों में असाधारण रूप से वृद्धि हो जाती है ।
रोगी के मूत्र के साथ शर्करा का आना ही ‘मधुमेह ‘ कहलाता है । यहाँ यह जान लेना चाहिए कि जो कुछ हम खाते हैं, पेट में जाकर पहले शर्करा का रूप धारण करता है जिसका शोषण करके ही शरीर शक्ति एवं गर्मी प्राप्त करता है, परंतु यही शर्करा जब बिना काम में आए ही मूत्र मार्ग से निकलकर बहने लगती है तो शरीर दिन-प्रतिदिन दुर्बल होने लगता है, व अंत में नष्ट हो जाता है ।
चिकित्सा –
रोग के आरंभ में यदि रोगी अधिक दुर्बल न हो तो उसे 2 या 3 दिन का उपवास एनिमा के साथ अवश्य करना चाहिए । फिर उपवास तोड़ने के बाद 10 दिनों तक अन्न का सर्वथा त्याग करके केवल उबली हुई और कच्ची शाक – तरकारियाँ अथवा उनके सूप एवं फलों अथवा उनके रसों पर रहना चाहिए । रोगी को साधारण स्नान, शीतल जल से करना चाहिए । दुर्बलता अधिक हो तो कुछ दिनों तक यह स्नान गुनगुने पानी से भी किया जा सकता है । स्नान से पहले धूप में बैठकर सरसों के तेल से संपूर्ण शरीर की खूब अच्छी तरह से मालिश अवश्य करा लेनी चाहिए । लगातार 40 दिनों तक उपर्युक्त चिकित्सा – क्रम चलाने से मधुमेह रोग दूर हो जाता है और यदि रोग बढ़ जाने के कारण 40वें दिन वह पूर्ण रुप से न चला जाए तो फिर उसी चिकित्सा – क्रम को फिर से दोहराना चाहिए, ताकि रोग जड़ – मूल से नष्ट हो जाए ।
जब पेशाब में चींटीयाँ न लगें तो समझें कि उसमें चीनी नहीं है । यदि रोगी जल्दी अच्छा होना चाहता है तो नीचे लिखी चिकित्सा – क्रम में और जोड़ देना चाहिए ।
1. प्रात:काल शौच के बाद ताजे पानी का एनिमा लें । फिर व्यायाम करें अथवा शुद्ध वायु में तेजी के साथ टहलें, इससे कब्ज टूटेगा ।
2 . दिन के तीसरे प्रहर के समय या शाम के समय मेहनस्नान करें । इससे जीवनीशक्ति में वृद्धि होगी ।
3 . तलपेट पर सेंक देकर अथवा मर्दन करके रात भर के लिए कमल की गीली पट्टी लगाएं ।
इस चिकित्सा क्रम में केवल 15 दिनों में ही पेशाब में शुगर आना बंद हो जाएगी ।
इस चिकित्सा – क्रम के अतिरिक्त शारीरिक और मानसिक विश्राम इस रोग में बहुत आवश्यक है । जामुन की गुठली का चूर्ण 15 रत्ती की मात्रा में अथवा केवल 4 – 4 जामुन की हरी पत्तियाँ प्रतिदिन दो बार चबाकर खाना भी लाभकारी है तथा सप्ताह में 1 दिन उपवास और मट्ठा का कल्प सेवन करना मधुमेह रोग को दूर करने में लाभप्रद सिद्ध होता है । और साथ ही कागजी नींबू का रस जल में निचोड़ कर दिन में कई बार पीना चाहिए । ताजे आँवले के रस में शुद्ध शहद चाटना भी लाभदायक है ।
2. बिना चीनी वाला मधुमेह और उसकी चिकित्सा –
इस प्रकार के मधुमेह को ‘बहुमूत्र ‘ के नाम से जाना जाता है । इस रोग में पानी जैसा पेशाब अधिक मात्रा में और बार-बार आता है । यह रोग प्राय: अधिक परिश्रम करने के कारण होता है । अतः किसी प्रकार की मानसिक उत्तेजना होने पर यह रोग एकाएक प्रकाश में आ सकता है । शरीर के रोमकूप जब किसी कारण से बंद हो जाते हैं तो शरीर का तरल मल जो शरीर से पसीने के रूप में निकलता है बजाय रोमकूपों के रास्ते गुर्दों में जमा होकर पेशाब के रास्ते बहुमूत्र के रूप में निकलने लगता है । शराब के अधिक प्रयोग करने, ठंड लगने तथा अधिक ठंडा जल सेवन करने आदि से भी इस रोग की उत्पत्ति हो जाती है ।
बहुमूत्र रोग में 24 घंटे में लगभग 10 गेलन तक मूत्र शरीर के बाहर निकलता है ।
चिकित्सा –
इस रोग में सर्वप्रथम पेट को साफ करने का उपाय होना चाहिए उसके बाद शरीर के रोमकूपों को खोलने का । पेट साफ करने और कब्ज दूर करने के लिए कम से कम 1 सप्ताह तक रसाहार करना चाहिए और जब तक आवश्यकता हो गर्म या ठंडे पानी का एनिमा लेना चाहिए । रात भर के लिए कमर की भीगी पट्टी भी लगानी चाहिए ।
प्रतिदिन हल्का व्यायाम करना अथवा खुली जगह में वायु सेवन करना भी नितांत आवश्यक है । क्षारधर्मी खाद्य पदार्थ जैसे फल ताजी सब्जी एवं कच्चा दूध आदि का सेवन करना चाहिए । कागजी नींबू का रस मिश्रित जल प्रचुर मात्रा में सेवन करना चाहिए । पहले कुछ दिनों तक गरम पानी पीना चाहिए उसके बाद ठंडा पानी । शरीर को गरम रखने के लिए गर्म वस्त्रों को पहनना चाहिए ।