देवी माँ कामाख्या चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोरथ पूर्ण होती है और चारो पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सहजता से प्राप्ति हो जाती है। जो लोग नकारात्मक शक्तियों से प्रभावित रहते है अथवा जिन्हे नजर दोष की समस्या रहती हो तो उन्हें संकल्प लेकर अवश्य माता की पूजा पाठ और इस चालीसा से स्तुति करनी चाहिए।
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देवी माँ कामाख्या चालीसा से माता को प्रसन करें
माता कामाख्या शक्तिपीठ मंदिर असम में गुवाहाटी के पास स्थित है। यह 52 शक्तिपीठो में से एक शक्तिपीठ है और तांत्रिको का यह एक प्रमुख गढ़ है। अनेक विशेषताओ में से इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है की यहाँ पर पास में स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है और ऐसा कहा जाता है की माँ के मासिक धर्म के कारण ये पानी लाल हो जाता है।
इस मंदिर में 3 दिन के लिए मासिक धर्म के चलते एक सफ़ेद कपडा दरबार में रख दिया जाता है और कपाट तीन दिन के लिए बंद कर दिए जाते है और फिर जब कपाट खुलते है तो वो सफेद कपड़ा लाल रक्त में भीगा हुआ मिलता है जिसे प्रसाद के तौर पर भक्तो में बाँट दिया जाता है। यह कपड़ा बहुत ही पवित्र रहता है और नकारात्मक शक्तियाँ इसके पास भी नहीं आ सकती।
जैसा की हर शक्तिपीठ के एक भैरव होते है तो इस शक्तिपीठ के भैरव है उमानंद भैरव और व्यक्ति जब तक इनके दर्शन न कर ले तब तक इस शक्तिपीठ की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
|| माँ कामाख्या चालीसा ||
माता कामाख्या समस्त सृष्टि की माता है, ये आदिशक्ति है और प्रकृति भी यही है। हम सब माँ की संताने है और जैसे प्रत्येक माँ अपने बच्चो से प्रेम करती है ऐसे ही माता कामाख्या भी अपने भक्तो से बहुत प्रेम करती है। तो चलिए जान लेते है अब माँ कामाख्या चालीसा का पाठ।
॥ दोहा ॥
सुमिरन कामाख्या करुँ, सकल सिद्धि की खानि ।
होइ प्रसन्न सत करहु माँ, जो मैं कहौं बखानि ॥
|| चौपाई ||
जै जै कामाख्या महारानी । दात्री सब सुख सिद्धि भवानी ॥1
कामरुप है वास तुम्हारो । जहँ ते मन नहिं टरत है टारो ॥2
ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा । पुरवहु सदा भगत मन आसा।।3
ऋद्धि सिद्धि तुरतै मिलि जाई । जो जन ध्यान धरै मनलाई ॥4
जो देवी का दर्शन चाहे । हृदय बीच याही अवगाहे ॥5
प्रेम सहित पंडित बुलवावे । शुभ मुहूर्त निश्चित विचारवे ॥6
अपने गुरु से आज्ञा लेकर । यात्रा विधान करे निश्चय धर ॥7
पूजन गौरि गणेश करावे । नन्दीमुख भी श्राद्ध जिमावे ॥8
शुक्र को बाँयें व पाछे कर । गुरु अरु शुक्र उचित रहने पर ॥9
जब सब ग्रह होवें अनुकूला । गुरु पितु मातु आदि सब हूला ॥10
नौ ब्राह्मण बुलवाय जिमावे । आशीर्वाद जब उनसे पावे ॥11
सबहिं प्रकार शकुन शुभ होई । यात्रा तबहिं करे सुख होई ॥12
जो चह सिद्धि करन कछु भाई । मंत्र लेइ देवी कहँ जाई ॥13
आदर पूर्वक गुरु बुलावे । मन्त्र लेन हित दिन ठहरावे ॥14
शुभ मुहूर्त में दीक्षा लेवे । प्रसन्न होई दक्षिणा देवै ॥15
ॐ का नमः करे उच्चारण । मातृका न्यास करे सिर धारण ॥16
षडङ्ग न्यास करे सो भाई । माँ कामाक्षा धर उर लाई ॥17
देवी मन्त्र करे मन सुमिरन । सन्मुख मुद्रा करे प्रदर्शन ॥18
जिससे होई प्रसन्न भवानी । मन चाहत वर देवे आनी ॥19
जबहिं भगत दीक्षित होइ जाई । दान देय ऋत्विज कहँ जाई ॥20
विप्रबंधु भोजन करवावे । विप्र नारि कन्या जिमवावे ॥21
दीन अनाथ दरिद्र बुलावे । धन की कृपणता नहीं दिखावे ॥22
एहि विधि समझ कृतारथ होवे । गुरु मन्त्र नित जप कर सोवे ॥23
देवी चरण का बने पुजारी । एहि ते धरम न है कोई भारी ॥24
सकल ऋद्धि – सिद्धि मिल जावे । जो देवी का ध्यान लगावे ॥25
तू ही दुर्गा तू ही काली । माँग में सोहे मातु के लाली ॥26
वाक् सरस्वती विद्या गौरी । मातु के सोहैं सिर पर मौरी ॥27
क्षुधा, दुरत्यया, निद्रा तृष्णा । तन का रंग है मातु का कृष्णा ॥28
कामधेनु सुभगा और सुन्दरी । मातु अँगुलिया में है मुंदरी ॥29
कालरात्रि वेदगर्भा धीश्वरि । कंठमाल माता ने ले धरि ॥30
तृषा सती एक वीरा अक्षरा । देह तजी जानु रही नश्वरा ॥31
स्वरा महा श्री चण्डी । मातु न जाना जो रहे पाखण्डी ॥32
महामारी भारती आर्या । शिवजी की ओ रहीं भार्या ॥33
पद्मा, कमला, लक्ष्मी, शिवा । तेज मातु तन जैसे दिवा ॥34
उमा, जयी, ब्राह्मी भाषा । पुर हिं भगतन की अभिलाषा ॥35
रजस्वला जब रुप दिखावे । देवता सकल पर्वतहिं जावें ॥36
रुप गौरि धरि करहिं निवासा । जब लग होइ न तेज प्रकाशा ॥37
एहि ते सिद्ध पीठ कहलाई । जउन चहै जन सो होई जाई ॥38
जो जन यह चालीसा गावे । सब सुख भोग देवि पद पावे ॥39
होहिं प्रसन्न महेश भवानी । कृपा करहु निज – जन असवानी ॥40
॥ दोहा ॥
कर्हे गोपाल सुमिर मन, कामाख्या सुख खानि ।
जग हित माँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खानि ॥
|| माँ कामाख्या चालीसा ||
*** जय श्री माता कामाख्या जी की जय ***
तो ये आपने पढ़ी है देवी माता कामाख्या चालीसा और यदि आप नित्य प्रति इस चालीसा का पाठ करते है तो निश्चय ही आप पर माता कामाख्या जी की कृपा बनी रहेगी और टोने-टोटके से आपकी रक्षा होगी और अन्य नकारात्मक शक्तियों से भी आपकी सुरक्षा होगी। माँ की कृपा से आप दिनों दिन उन्नति को प्राप्त होंगे।
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Q. माता कामख्या जी ने किस असुर का वध किया था ?
Ans. माँ ने नरकासुर का वध किया था और यह नरकासुर प्रागज्योतिषपुर का राजा था और इसने देवताओ व मनुष्यो को बहुत परेशान कर रखा था।