कर्म और भाग्य में कौन बड़ा है और ये होते क्या हैं ?
“कर्म या भाग्य में बड़ा कौन” – ये प्रश्न अक्सर हमारे मन में आ जाता है लेकिन तब ये सबसे ज्यादा आता है जब हम किसी काम को करने में बहुत मेहनत करते है और फिर भी हमे सफलता प्राप्त नहीं होती है।
और न जाने कितनी बार आपने लोगो को कहते हुए सुना होगा की – बेचारा मेहनती तो बहुत था लेकिन उसके भाग्य में ही नहीं था।
लेकिन जब हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि कर्म और भाग्य में कौन बड़ा है या वे क्या हैं, तो हमें कोई उचित उत्तर नहीं मिल पाता है जो हमें संतुष्ट कर सके, इसलिए आज हम कर्म और भाग्य को सभी लोगों के लिए बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे जिससे आसानी से इनके बारे में समझा जा सके।
तो पहले हम ये छोटी सी कहानी पढ़ लेते हैं…













तो ऐसी ही परिस्थति होती है हम सबके साथ भी जब किसी के पास उत्तर नहीं होता है तो प्रश्न पूछने वाले को चुप कर दिया जाता है या बात टाल दी जाती है ।
लेकिन अगर आपके मन में भी ऐसे प्रश्न आते हो तो आप हमसे पूछ सकते है हमारे Forum पर।
कर्म और भाग्य के बारे में जानने के लिए सबसे पहले हमें उनकी परिभाषा जाननी होगी तो चलिए जानते हैं…
कर्म क्या है ?
आज तक हम सभी ने हिंदी में पढ़ा है कि कोई भी काम करना या कुछ भी करना कर्म है जैसे – सोना, चलना, खाना, पढ़ना, आदि। यानी जीवन में जब से हम मां के गर्भ में आते हैं और मरते दम तक कर्म करते ही रहते हैं। कर्म तो सभी लोग करते हैं लेकिन सफलता कुछ ही लोगों को मिलती है। तो बताओ ऐसा क्यों होता है…?
शिष्य : पता नहीं, ये तो आप ही बताइये। और ये भी बताये की वे कौन से कर्म हैं जिन्हें करने के लिए भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में कहते हैं ? क्योंकि, सोने, घूमने, मजे लेने के लिए तो कृष्ण जी कहेंगे नहीं।
कैसे कर्म करने चाहिए इसके बारे में तो हम किसी और दिन चर्चा करेंगे अभी हम कर्म और भाग्य के बारे में और जान लेते है।
और आपको भाग्य के अनुसार कर्म की एक और परिभाषा बताता हूँ – “कर्म वह है जो भाग्य द्वारा निर्मित होता है”।
शिष्य : तो क्या इसका मतलब भाग्य बड़ा है।
नहीं, अभी तुम्हें और जानना होगा। अभी तुम्हें भाग्य के बारे में भी जानना होगा और फिर बताना कि कर्म बड़ा है या भाग्य।
भाग्य क्या है ?
भाग्य वो सीधी साधी सी चीज है जिस पर हम जब चाहें अपनी असफलता का दोष लगा देते हैं। अगर कोई असफल हो जाता है तो कोई भी सीधा ही कहता है इसका तो भाग्य ही खराब है। तो ये है बेचारा हमारा सीधा साधा सा भाग्य।
चलो, अगर आप थोड़ा मुस्करा लिए हो तो अब हम वास्तव में जानते हैं की भाग्य क्या होता है…
साधारण शब्दों में कहे तो “कर्म के द्वारा जिसका निर्माण होता है वो भाग्य होता है”
शिष्य : लेकिन ये क्या इस हिसाब से तो कर्म बड़ा हो गया… और कभी तो आप कहते हैं कि कर्म से भाग्य बनता है और कभी भाग्य से कर्म बनता है। किन्तु ऐसा कैसे हो सकता है।
कर्म और भाग्य में कौन बड़ा हैं ?
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क्या किस्मत और भाग्य अलग होते है ?
नहीं, भाग्य को ही किस्मत कहते है। किस्मत शब्द अरबी भाषा का है।